कुछ कुछ याद .. कुछ भूला सा ख्वाब लगता है धुंद मे लिपटे हुए शीशों पे जैसे.. अपनी उँगलियों से अनगिनत ख्याल फेरे हो मैंने.. और फिर एक पानी की बौछार मे समा के लगें हों वो बहने.. सब कुछ अधूरा सा दिखता है.. रेत के टीलों की उम्र सा नाज़ुक करवटों के बदलने से कहीं छूटा हुआ चादरों की सिलवटों पर बिखरा ख्वाब लगता है कुछ कुछ याद ..कुछ भूला सा ख्वाब लगता है .. याद करने को दे गए जैसे तुम बहुत कुछ्.. और कुछ भी नही... एक पल में साथ ले गए सब.. कुछ बातें, उन मुलाकातों से बनी ये यादे लेकिन अब सब कुछ अधूरा सा लगता है कुछ याद .. कुछ कुछ भूला सा ख्वाब लगता है
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